शनिवार, 7 अगस्त 2010

--भ्रष्टाचार--

बिक गया ज़मीर है,
बिक गए उसूल ,
हर तरफ  ख़ून आदर्शो का हो रहा |
बन गयी झूठ की इमारते ,
मिट गई सच्ची इबारते ,
नीव रखी सच की किसने,नाम किसको याद है |
देश मे गद्दार है ,
इसको छलनी कर रहे ,
अपना उल्लू साध कर,अपनों से खेला कर रहे |
ईमान अब किताबो की बाते ,
अब पुरानी हो गई सच की मिसाल है ,
बस पैसा बोलता है,ये भ्रष्टाचार का कमाल है |

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