मंगलवार, 19 मई 2009

शिकायत है तुमसे

((देश की सेवा मे समर्पित एक वीर जवान को अपनी पत्नी का पत्र ))
शिकायत है तुमसे की मिलते नहीं अब हमसे
दुरिया क्यों है हम तो अन्जान है इस बात से
हर पल तुम्हारी राह तक रहे है
और ये पलके रो रो कर थक रही है
सोच मे पड़ गए है हम क्या भूल हुई
हमारी तुम्हारी राहे क्यों दूर हुई
वो दिन कितने अलग थे और ये दिन कितने अलग है
कितनी बातें याद आती है,हर याद हमें सताती है
याद आती है तुम्हारी हर बात और तुम्हारा साथ
हम रूठते थे तुम मनाते थे
हर दुःख में भी ख़ुशी का एहसास कराते थे
अपना दुःख छुपाते थे,मुझे हर मुश्किल मे हँसना सिखाते थे
कब आओगे घर बस इतना बता दो
तुम्हारे आने की ख़बर भी मुझे जिंदा रखती है |

उसको चाँद कहते है

आसमान की खिड़की से कोई झाँक रहा था शायद
दुनिया रोशन हुए जा रही थी
बदलो के पीछे छुपकर छुपा छुपी का खेल ,खेल रहा था कोई
धूप छाँव हुए जा रही थी
शायद उसके दृष्टिपटल पर निशा की झलक पड़ी
अब वो घर लौट रहा था
आसमान की खिड़की से झाँक रहा है अब कोई
दाग़ है उसके चेहरे पर फिर भी उसको चाँद कहते है

शनिवार, 9 मई 2009

जीं ले जिंदगी

है जो आज तो जीं ले जिंदगी ,कल को किसने देखा है
पीं ले हर ग़म को ,खुशियों को हँस के बीता
हर पल मे मज़ा है ,इस जिंदगी से ना हो ख़फा
रास्ते मे दोस्त भी मिलते है ,दुश्मन भी मिलते है
मिला ले हर दिल से दिल ,दुश्मन भी संग चलते है
पैरो के तले ये ज़मी है ,उपर है आसमान
साथ बहती है तेरे ये नदी और ये बादल भी करते है तुझे सलाम
है जो आज तो जीं ले जिंदगी ,कल को किसने देखा है....