गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मय



" मय को पियो इतना
       के मन बहल जाए
             मय को पियो इतना
                  के ग़म मे डूबा  संभल जाए
                        ना करो यारी इससे इतनी
                              के जिंदगी बिख़र जाए "
                

सोमवार, 23 अगस्त 2010

राखी पर आना तुम भैया

बचपन की यादें कुछ ऐसी है भैया,
कभी नहीं जाती मेरे मन मस्तिष्क से भैया
मेरे प्यारे राज दुलारे भैया
राखी पर आना तुम भैया

साथ-साथ पले बढ़े, खेले साथ हम भैया
शरारतो मे उस्तादों के उस्ताद थे तुम भैया
बचपना न भुला पाउ मे वो कभी अपना भैया     
राखी पर आना तुम भैया

याद है तुम्हे मिट्टी के टीले बनाना आँगन मे
और वो दादी से सुनना कहानी रोज भैया ??
याद है बारिश मे कागज की नाव दौड़ाना
और वो डाट खाने पर एक दुसरे को चिढाना भैया
राखी पर आना तुम भैया  


   

रविवार, 15 अगस्त 2010

वृक्ष

वृक्ष ठंडी गर्मी और बरसात ,
हर मौसम में हमारे साथ |
      रखता है वह हर पल  हर क्षण हमारा ध्यान
      हरा भरा वह वृक्ष , रहता सदा हमारी आँखों के समक्ष |
वह है एकाग्रता की मूरत
वह है ईश्वर की एक सूरत |
      आने वाली दुष्ट हवाएं , उसके निर्मल पत्तो से
      उसकी शाखाओ के जत्थों से , हो जाती निर्मल निःस्वार्थी |
छोटे-छोटे तृण भी करते आदर इसका
करता किरणों से स्वागत सूरज इसका |
      वृक्ष है ये न्यारा,
      ये वक़्त है अर्पण इसको सारा  |
इसकी हर एक श्वास से श्वासे भरता हूँ ,
इसलिए इसके चरणों का मे वंदन करता हूँ|

ऐसा मेरा देश

अनेक वेश, संस्कृतियाँ अनेक
अनेक बोलियाँ, भाषाएँ अनेक
धर्म कई, कर्मयोद्धा कई
जो दे प्यार का संदेश
ऐसा मेरा देश

वीरो की जन्म  भूमि है जो
विद्वानों की कर्मभूमि है जो
शहीदों के खून से सिचीं ,
मिट्टी के लालो की रणभूमि है जो
जो शौर्यवीरो का है स्वदेश
ऐसा मेरा देश

दीपावली जहाँ बुरे पर सच्चाई का पथ साकार करे
ईद जहाँ  आपस मे भाईचारा सिखलाए
क्रिसमस जहाँ रिश्तो को मजबूत बनाये
लौह्डी जहाँ सबके मन को आनंदित कर जाए
जहाँ  हर धर्म दे एकता का संदेश
ऐसा मेरा देश

पावन जिसकी गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना
पावन जिसके तीर्थ-पुराण, पावन है पत्ता-पत्ता जिसका
जहाँ पूज्य है धरती माता, सम्मान करता है जिसका हर देश
ऐसा मेरा देश
--जय हिंद जय भारत--

शनिवार, 7 अगस्त 2010

--भ्रष्टाचार--

बिक गया ज़मीर है,
बिक गए उसूल ,
हर तरफ  ख़ून आदर्शो का हो रहा |
बन गयी झूठ की इमारते ,
मिट गई सच्ची इबारते ,
नीव रखी सच की किसने,नाम किसको याद है |
देश मे गद्दार है ,
इसको छलनी कर रहे ,
अपना उल्लू साध कर,अपनों से खेला कर रहे |
ईमान अब किताबो की बाते ,
अब पुरानी हो गई सच की मिसाल है ,
बस पैसा बोलता है,ये भ्रष्टाचार का कमाल है |