मंगलवार, 19 मई 2009

उसको चाँद कहते है

आसमान की खिड़की से कोई झाँक रहा था शायद
दुनिया रोशन हुए जा रही थी
बदलो के पीछे छुपकर छुपा छुपी का खेल ,खेल रहा था कोई
धूप छाँव हुए जा रही थी
शायद उसके दृष्टिपटल पर निशा की झलक पड़ी
अब वो घर लौट रहा था
आसमान की खिड़की से झाँक रहा है अब कोई
दाग़ है उसके चेहरे पर फिर भी उसको चाँद कहते है

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