आसमान की खिड़की से कोई झाँक रहा था शायद
दुनिया रोशन हुए जा रही थी
बदलो के पीछे छुपकर छुपा छुपी का खेल ,खेल रहा था कोई
धूप छाँव हुए जा रही थी
शायद उसके दृष्टिपटल पर निशा की झलक पड़ी
अब वो घर लौट रहा था
आसमान की खिड़की से झाँक रहा है अब कोई
दाग़ है उसके चेहरे पर फिर भी उसको चाँद कहते है
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